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पड़ी हैं कुछ बेशकीमती स्मृतियाँ स्मरण अरण्य की किसी उपेक्षित गुफा में
जिनका है अपना ही कोई अदृश्य तिलस्मी अंतर्द्वार
गुफा, जहाँ नहीं है मौजूद कोई भी खिड़की या कोई रौशनदान ही
खुलता है उसका द्वार अकस्मात कुछ ऐसे
जैसे दिया हो दस्तक जंग लगे हुए फाल्गुन के सांकल ने
और किया हो उच्चारण शून्य में दबी जुबान
अरबी उपन्यास के जादुई शब्द "खुल जा सिमसिम" का
द्वार के खुलते ही दिखता है करीने से सजाकर रखा हुआ
खजाना स्मृतियों का, दमकता है अँधेरे में
निरूद्देश नौका पर हैं सवार निरुपाय स्मृतियाँ
भाषा भूल चुकी स्मृतियाँ पोषित हो रही हैं हमारी करोटी में
किसी परजीवी की तरह और चला रहीं हैं काम शब्दों का
होकर निःशब्द, कर रही हैं संक्रमित हमारे मन को बार-बार
धूसर स्मृतियों के तन पर लगे हैं मोरपंख
जब छा जाता है मन के आकाश पर भावनाओं का मेघ
और गिरने लगती हैं रिमझिम बूँदें गगनचारिणी आँखों से
नाचता है स्मृतियों का अबाध्य मयूर !!
पड़ी हैं कुछ बेशकीमती स्मृतियाँ स्मरण अरण्य की किसी उपेक्षित गुफा में
जिनका है अपना ही कोई अदृश्य तिलस्मी अंतर्द्वार
गुफा, जहाँ नहीं है मौजूद कोई भी खिड़की या कोई रौशनदान ही
खुलता है उसका द्वार अकस्मात कुछ ऐसे
जैसे दिया हो दस्तक जंग लगे हुए फाल्गुन के सांकल ने
और किया हो उच्चारण शून्य में दबी जुबान
अरबी उपन्यास के जादुई शब्द "खुल जा सिमसिम" का
द्वार के खुलते ही दिखता है करीने से सजाकर रखा हुआ
खजाना स्मृतियों का, दमकता है अँधेरे में
निरूद्देश नौका पर हैं सवार निरुपाय स्मृतियाँ
भाषा भूल चुकी स्मृतियाँ पोषित हो रही हैं हमारी करोटी में
किसी परजीवी की तरह और चला रहीं हैं काम शब्दों का
होकर निःशब्द, कर रही हैं संक्रमित हमारे मन को बार-बार
धूसर स्मृतियों के तन पर लगे हैं मोरपंख
जब छा जाता है मन के आकाश पर भावनाओं का मेघ
और गिरने लगती हैं रिमझिम बूँदें गगनचारिणी आँखों से
नाचता है स्मृतियों का अबाध्य मयूर !!
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