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हुए सबसे पहले हम नर और नारी, श्वेत और अश्वेत
हम हुए फिर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई
दिमाग लगाया तो हम दलित और सवर्ण भी हुए
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
जब हम बढ़े आगे और की हमने खूब तरक्की
तो हम हुए अमीर और गरीब, सुखी और दुखी
हम शिक्षित और निरक्षर, विद्वान् और मुर्ख हुए
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
समय के साथ किया हमने प्रवेश जब विज्ञान के युग में
तो हुए हम आस्तिक और नास्तिक, प्रगतिशील और पिछड़े
हम हुए वामपंथी और दक्षिणपंथी, मूक और वाचाल
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
हम भगवान् तक बन गए जब हुए "ईसा मसीह" और "बिरसा मुंडा"
संत भी बन गए होकर रैदास, नानक, कबीर, फरीद और मीरा
वीर बने "शिवाजी", "भगत" होकर, बने आदर्श बन स्वामीजी और बापू
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
पढ़ा हमने गीता, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल, तो बने हम धार्मिक
वैज्ञानिक बने पढ़कर भौतिकी, जीव विज्ञान, रसायन और वनस्पति शास्त्र
राजनीति पढ़ नेता बने, हुए कलाविद पढ़ कला की तमाम विधाएँ
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
कितना हो पाए सामाजिक, हम समाज शास्त्र पढ़कर ही
जोड़ पाता जो समाज को, बनने के पहले ही पुल वो ढह गया
पढ़कर रामायण हम ढूँढ रहे हैं सदियों से स्वर्ग जाने की सीढ़ी
और ऐसे ही तमाम झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
हुए सबसे पहले हम नर और नारी, श्वेत और अश्वेत
हम हुए फिर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई
दिमाग लगाया तो हम दलित और सवर्ण भी हुए
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
जब हम बढ़े आगे और की हमने खूब तरक्की
तो हम हुए अमीर और गरीब, सुखी और दुखी
हम शिक्षित और निरक्षर, विद्वान् और मुर्ख हुए
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
समय के साथ किया हमने प्रवेश जब विज्ञान के युग में
तो हुए हम आस्तिक और नास्तिक, प्रगतिशील और पिछड़े
हम हुए वामपंथी और दक्षिणपंथी, मूक और वाचाल
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
हम भगवान् तक बन गए जब हुए "ईसा मसीह" और "बिरसा मुंडा"
संत भी बन गए होकर रैदास, नानक, कबीर, फरीद और मीरा
वीर बने "शिवाजी", "भगत" होकर, बने आदर्श बन स्वामीजी और बापू
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
पढ़ा हमने गीता, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल, तो बने हम धार्मिक
वैज्ञानिक बने पढ़कर भौतिकी, जीव विज्ञान, रसायन और वनस्पति शास्त्र
राजनीति पढ़ नेता बने, हुए कलाविद पढ़ कला की तमाम विधाएँ
और इन्हीं झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
कितना हो पाए सामाजिक, हम समाज शास्त्र पढ़कर ही
जोड़ पाता जो समाज को, बनने के पहले ही पुल वो ढह गया
पढ़कर रामायण हम ढूँढ रहे हैं सदियों से स्वर्ग जाने की सीढ़ी
और ऐसे ही तमाम झंझटों के बीच हमारा इंसान होना रह गया
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