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हमें करना था वो जो होता सही
पर हमने वो किया जो था आसान
और बढ़ा लीं अपनी मुश्किलें
हम मगन थे अपनी ही दुनिया में औरों से बेखबर
लोग थे कि हमारे असामाजिक होने की बात कर रहे थे
हम थे कि खुश होते रहे कि लोग हमें फिर भी जानते थे
हमें मुस्कुराते रहना था कठिन समय में भी
कि हम बदल पाते दुनिया की सुरत
पर हमने दुनिया देखी और जार-जार रोये
हमसे दुनिया ने कहा शरीर को माटी में मिल जाना है
और हम लगाते रहे मुल्तानी मिट्टी इसे कसने को
शरीर तो कस गया पर आत्मा ढ़ीली पड़ती गयी
हमारी आँखों को देखना था आत्मा की सुन्दरता
पर हम पड़े रहे शरीर के मोह में सब जानते हुए
आत्मा अभिमानी थी, चली गयी त्यागकर शरीर
ऐ दिमाग, तू किसी काम न आया
हम बने रहे आजीवन ज्ञान पापी
हमें मुर्ख बने रहना ही रास आया !!!
----सुलोचना वर्मा-----
हमें करना था वो जो होता सही
पर हमने वो किया जो था आसान
और बढ़ा लीं अपनी मुश्किलें
हम मगन थे अपनी ही दुनिया में औरों से बेखबर
लोग थे कि हमारे असामाजिक होने की बात कर रहे थे
हम थे कि खुश होते रहे कि लोग हमें फिर भी जानते थे
हमें मुस्कुराते रहना था कठिन समय में भी
कि हम बदल पाते दुनिया की सुरत
पर हमने दुनिया देखी और जार-जार रोये
हमसे दुनिया ने कहा शरीर को माटी में मिल जाना है
और हम लगाते रहे मुल्तानी मिट्टी इसे कसने को
शरीर तो कस गया पर आत्मा ढ़ीली पड़ती गयी
हमारी आँखों को देखना था आत्मा की सुन्दरता
पर हम पड़े रहे शरीर के मोह में सब जानते हुए
आत्मा अभिमानी थी, चली गयी त्यागकर शरीर
ऐ दिमाग, तू किसी काम न आया
हम बने रहे आजीवन ज्ञान पापी
हमें मुर्ख बने रहना ही रास आया !!!
----सुलोचना वर्मा-----
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