Thursday, August 25, 2016

इच्छाएँ

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हम गए शिवाला और सुना आए शिव को अपनी औघर इच्छाएँ
शंकर शाम्भवी योग मुद्रा में थे लीन, त्रिकालदर्शी भोले बने रहे 

हम कान्हा के वृन्दावन गए कि सुना पायें अपनी अपूर्ण इच्छाएँ
मुरलीधर आँखों को मूँद सम्पूर्ण तन्मयता से बजाते रहे बाँसुरी

हमने टूटते तारों पर ज़ाहिर की अपनी आसमानी इच्छाएँ
सितारे नहीं पहुँच पाए जमीन तक, चमकते रहे बन जुगनू  

हमने नवाया शीश दरगाह पर लेकर अपनी बेखौफ इच्छाएँ
पीर बाबा सोए रहे इत्र से सनी चादर तान अपनी मजार पर 

हम चढ़ाने गए भोग तारापीठ में लेकर अपनी अनंत इच्छाएँ
और हमें सुनने से पहले ही काली ने निकाल लिया था जीभ 

हम गिरिजाघर भी गए लेकर अपनी अलौकिक इच्छाएँ
हम क्या माँगते, ईसा मसीह हाथ फैलाये सूली पर टंगे थे

वहाँ पीठ पर रीढ़ की हड्डी नहीं, हमारी जम चुकी इच्छाएँ हैं 
जो झुकाये जा रही हैं हमें वक़्त के साथ हर रोज थोड़ा - थोड़ा

इच्छाएँ हैं औघर, अपूर्ण, आसमानी, बेखौफ, अनंत, अलौकिक 
जिसके आगे हैं बेबस इंसान, देवी, देवता, सूफी पीर और मसीहा 

-----सुलोचना वर्मा-----

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