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हम उठा लाए ईंटें ढह चुके रिश्ते के मकान से
हमने बनाया सपनों का एक नया आशियाना
और ढह गया यह भी फकत चंद ही महीनों में
हमें रहा दरारों पर घर बनाने का शौक पुराना
समंदर जितना ही नमक था मेरी आँखों के पानी में
पर शांत रहा समंदर कि हवा निभा रहा था उसका साथ
मैं तरसती रही पाने को साथ तुम्हारा, तुम हवा हो गए
तुमने देखा मेरा समंदर और किया किनारा छुड़ाकर हाथ
लिखा था किताबों में नुस्खा सात बार गिरकर आठ बार उठने का
पर कहाँ लिखा था कि कैसे उठा जाता है नजरों से गिरने के बाद
न जाने कैसा था यह संयोग कि मैं हर बार चली धारा के विपरीत
कि वो मरी हुई मछलियाँ थीं जो बह रहीं थी जल की धारा के साथ
-----सुलोचना वर्मा------
हम उठा लाए ईंटें ढह चुके रिश्ते के मकान से
हमने बनाया सपनों का एक नया आशियाना
और ढह गया यह भी फकत चंद ही महीनों में
हमें रहा दरारों पर घर बनाने का शौक पुराना
समंदर जितना ही नमक था मेरी आँखों के पानी में
पर शांत रहा समंदर कि हवा निभा रहा था उसका साथ
मैं तरसती रही पाने को साथ तुम्हारा, तुम हवा हो गए
तुमने देखा मेरा समंदर और किया किनारा छुड़ाकर हाथ
लिखा था किताबों में नुस्खा सात बार गिरकर आठ बार उठने का
पर कहाँ लिखा था कि कैसे उठा जाता है नजरों से गिरने के बाद
न जाने कैसा था यह संयोग कि मैं हर बार चली धारा के विपरीत
कि वो मरी हुई मछलियाँ थीं जो बह रहीं थी जल की धारा के साथ
-----सुलोचना वर्मा------
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