-----------------------------------------------------
खुशियाँ एकदम से तो गायब नहीं हो जाती हैं
गुम जाती हैं अक्सर एक पाँव के मोजे की तरह
जो मिल नहीं पाता हमें जरुरत के ऐन मौके पर
और फिर प्रकट होता है अप्रत्याशित जगह से
असम्भव है बिना दुःख भोगे खुशियों को पाना
बिन बारिश के इंद्रधनुष उगने जितना दुष्कर
खुशियाँ होती हैं वो वनफूल जो उग आती हैं
उन जगहों पर जहां सोचा ही नहीं जाता उन्हें
खुशियाँ होती हैं वो इत्र जिसे छिड़कते हैं हम
दूसरों पर जितना, महक उठते उतना खुद भी
खुशियाँ झाँकती हैं हमारे जीवन में ठीक वैसे ही
जैसे झाँकता सूर्य का प्रकाश खपरैल की छत से
हम चले अनजान रास्तों पर ढूंढते हुए खुशियाँ
जबकि खुशियाँ ही रास्ता थीं जीवन के पथ पर
चलते - चलते पहुंचे हम सफेद कास के वन में
और आँखों को मिलीं खुशियाँ उस भारी क्षण में
खुशियाँ होती हैं मेघों के जैसी जो उड़ जाती हैं
बनकर भाप तनिक देर तक निहारे जाने पर
मुनासिब नहीं होता है खुशियों को ढूंढकर लाना
खुशियों का मतलब है कुछ बातों को भूल जाना
---सुलोचना वर्मा----
खुशियाँ एकदम से तो गायब नहीं हो जाती हैं
गुम जाती हैं अक्सर एक पाँव के मोजे की तरह
जो मिल नहीं पाता हमें जरुरत के ऐन मौके पर
और फिर प्रकट होता है अप्रत्याशित जगह से
असम्भव है बिना दुःख भोगे खुशियों को पाना
बिन बारिश के इंद्रधनुष उगने जितना दुष्कर
खुशियाँ होती हैं वो वनफूल जो उग आती हैं
उन जगहों पर जहां सोचा ही नहीं जाता उन्हें
खुशियाँ होती हैं वो इत्र जिसे छिड़कते हैं हम
दूसरों पर जितना, महक उठते उतना खुद भी
खुशियाँ झाँकती हैं हमारे जीवन में ठीक वैसे ही
जैसे झाँकता सूर्य का प्रकाश खपरैल की छत से
हम चले अनजान रास्तों पर ढूंढते हुए खुशियाँ
जबकि खुशियाँ ही रास्ता थीं जीवन के पथ पर
चलते - चलते पहुंचे हम सफेद कास के वन में
और आँखों को मिलीं खुशियाँ उस भारी क्षण में
खुशियाँ होती हैं मेघों के जैसी जो उड़ जाती हैं
बनकर भाप तनिक देर तक निहारे जाने पर
मुनासिब नहीं होता है खुशियों को ढूंढकर लाना
खुशियों का मतलब है कुछ बातों को भूल जाना
---सुलोचना वर्मा----
No comments:
Post a Comment