Monday, August 15, 2016

प्रयोजन

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मुझसे मेरा ही परिचय करा रहे थे असह्यनीय पीड़ा भरे दिन 
पीड़ा भरे दिन. जिनमें आकाश में छाए थे काले - काले से बादल 
पीड़ा भरे दिन. जिनमें टूटे हुए सड़कों पर भरा था घुटने तक जल 
पीड़ा भरे दिन. जिनमें जिंदगी आजमा रही थी मुझपर अपना बल  

पीड़ा भरे दिन बता रहे थे पता चंद सरल लोगों का 
सरल लोग, जो देते हैं आपका साथ हर परिस्थिति में 
सरल लोग, जो नहीं कर पाते हैं अभिनय झूठे रिश्तों का 
सरल लोग, जो बचा लेते हैं रिश्तों को जटिल हो जाने से 

सरल लोग वैसे बिल्कुल भी न थे जैसे होते हैं रूपकथा के पात्र 
रूपकथा के पात्र , जिनके सुंदर चेहरे पर होता है तेज रौशनी का  
रूपकथा के पात्र , जिनके शब्द छल सकते हैं आपको अनायास 
रूपकथा के पात्र , जिनके पास है मंत्र निज जरूरतों को साधने का 

रूपकथा के पात्र रूपकथा से निकलकर आ पहुँचे मेरी जिंदगी में 
मेरी जिंदगी में अब वो लोग थे जिनके होने की मैं करती रही कामना 
मेरी जिंदगी में अब आ गयी इतनी जिंदगी कि मैंने देखा नया सपना 
मेरी जिंदगी में अब रूपकथा के पात्र के सिवाय था कहाँ कोई अपना 

मेरी जिंदगी में अब छल कर रहे थे शब्द बड़ी ही कुशलता से मौन रहकर 
मौन रहकर बता रहे थे कि कहे गए शब्द कर चुके थे पूरी अपनी जरुरत 
मौन रहकर बता रहे थे कि जरुरत भर ही शब्दों का किया गया था प्रयोग 
मौन रहकर बता रहे थे कि प्रयोग के प्रयोजन मात्र जरुरत रही मेरी जिंदगी

पीड़ा भरे दिन समझा गए प्रयोजन मौन की, जरुरत भर शब्दों को खर्चने की

---सुलोचना वर्मा------

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