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इन दिनों एक स्पर्श
अक्सर दर्ज हो जाता है
स्मृतियों के काँधे पर
इन दिनों एक मुस्कान
स्मृति उकेर जाती है
शून्य में तैरते हुए अक्सर
इन दिनों एक शब्द
गूँजता रहता है कानों में
बारबार, देर तलक
इन दिनों एक दृष्टि
पीछा करती है मेरा
निर्वासित एकांत में
इन दिनों एक उपलब्धि
चुभ रही है शूल जैसी
स्मृतियों के हृदय में
इन दिनों एक स्मृति
जी रही हूँ वर्तमान में
लेकर अतीत से उधार
इन दिनों एक टीस
चलती है मेरे साथ
हर पल, निरंतर, अथक
इन दिनों एक पौधा
नहीं बन पाता पुनर्नवा
बनकर महकता है पनहास
---सुलोचना वर्मा ------
इन दिनों एक स्पर्श
अक्सर दर्ज हो जाता है
स्मृतियों के काँधे पर
इन दिनों एक मुस्कान
स्मृति उकेर जाती है
शून्य में तैरते हुए अक्सर
इन दिनों एक शब्द
गूँजता रहता है कानों में
बारबार, देर तलक
इन दिनों एक दृष्टि
पीछा करती है मेरा
निर्वासित एकांत में
इन दिनों एक उपलब्धि
चुभ रही है शूल जैसी
स्मृतियों के हृदय में
इन दिनों एक स्मृति
जी रही हूँ वर्तमान में
लेकर अतीत से उधार
इन दिनों एक टीस
चलती है मेरे साथ
हर पल, निरंतर, अथक
इन दिनों एक पौधा
नहीं बन पाता पुनर्नवा
बनकर महकता है पनहास
---सुलोचना वर्मा ------
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